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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" کے بارے میں

سادہ جیسا کہ میں محسوس کرتا ہوں۔

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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" کی کتابیں

नील पदम् की डायरी

नील पदम् की डायरी

अपने जज्बातों को न संभाल पाने की हैसियत

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नील पदम् की डायरी

नील पदम् की डायरी

अपने जज्बातों को न संभाल पाने की हैसियत

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दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्" جا آرٽيڪل

पिता स्वरुप (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-नवम् श्लोक)

5 October 2023
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स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये॥ हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार पुत्र को पिता (बिना बाधा के) सहज ही प्राप्त होता है, उसी प्रकार आप भी (हम यजमानों के लिये) बाधारहित होकर

सत्य स्वरुप (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-अष्टम श्लोक)

4 October 2023
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राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानं स्वे दमे॥ "  हम गृहस्थ लोग दीप्तिमान्, यज्ञों के रक्षक, सत्यवचनरूप व्रत को आलोकित करने वाले, यज्ञस्थल में वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्निदेव के निकट

ईश्वर साक्षी है - अग्नि साक्षी है (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-सप्तम श्लोक)

3 October 2023
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" उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् । नमो भरन्त एमसि "  " हे जाज्वल्यमान अग्निदेव ! हम आपके सच्चे उपासक हैं । श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा आपकी स्तुति करते हैं और दिन-रात, आपका सतत गुणगान करते है

विराट अन्तर्यामी ईश्वर (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-षष्टम श्लोक)

1 October 2023
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यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥ हे अग्निदेव ! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते हैं, वह भविष्य में किये जाने वाले यज्ञ

मैं पुरखों के घर आया था

30 September 2023
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पता पिता से पाया था मैं पुरखों के घर आया था एक गाँव के बीच बसा पर उसे अकेला पाया था । माँ बाबू से हम सुनते थे उस घर के कितने किस्से थे भूले नहीं कभी भी पापा क्यों नहीं भूले पाया था । जर्जर एक

सत्कर्मों के उत्प्रेरक ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - पंचम श्लोक )

30 September 2023
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अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः । देवो देवेभिरा गमत्॥ " हे अग्निदेव ! आप हवि -प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप युक्त हैं । आप देवों के साथ इस यज्ञ

होतारं रत्नधातमम् - ऋग्वेद का प्रथम मंत्र

30 September 2023
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ऋग्वेद को प्रथम वेद माना जाता है। ऋग्वेद में विभिन्न देवी–देवताओं के स्तुति संबंधित मंत्रों का संकलन है।  ऋग्वेद के मंत्रों का प्रादुर्भाव भिन्न-भिन्न समय पर हुआ। कुछ मंत्र प्राचीन हैं और कुछ आधुनिक।

ऋग्वेद के प्रथम मंडल के प्रथम सूक्त का द्वितीय मंत्र

30 September 2023
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अ॒ग्निः पूर्वे॑भि॒र्ऋषि॑भि॒रीड्यो॒ नूत॑नैरु॒त। स दे॒वाँ एह व॑क्षति॥  ( ऋग्वेद मंडल १, सूक्त १, मंत्र २ ) प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति क्यों करनी चाहिए, यह बताया गया था। द्वितीय मंत्र में उक्त अग्न

हे अग्नि तुम प्रथम पग हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त - तृतीय श्लोक )

30 September 2023
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अग्निना  रयिम्श्र्न्वत्पोष्मेव दिवेदिवे ।  यशसं  वीरवत्तमम्  ॥  " अर्थात् जो अग्निदेव  प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रशंसित हैं और जो आधुनिक काल में भी ऋषिकल्प वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं, वे अग्नि

हे अग्नि तुम सत्य वाहक हो ( ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त - चतुर्थ श्लोक )

30 September 2023
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अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । स इद्देवेषु गच्छति॥ " हे अग्निदेव ! आप सबका रक्षण करने में समर्थ हैं । आप जिस अध्वर (हिंसारहित यज्ञ) को सभी ओर से आवृत किये रहते हैं, वही यज्ञ देवताओं तक पहुँ