विराट अन्तर्यामी ईश्वर (ऋग्वेद- प्रथम मण्डल- प्रथम सूक्त अर्थात अग्नि सूक्त-षष्टम श्लोक)
यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि । तवेत्तत्सत्यमङ्गिरः॥
हे अग्निदेव ! आप यज्ञ करने वाले यजमान का धन, आवास, संतान एवं पशुओं की समृद्धि करके जो भी कल्याण करते हैं, वह भविष्य में किये जाने वाले यज्ञ